मंगलम चौधरी को लगा कि पण्डित जी ने उनकी दुखती रग पर ही हाथ रख दिया हो चौधरी सहाब बोले वो कैसे पण्डित जी मैं तो सुयश की बिछड़ी माँ को खोजने निकला हूँ पण्डित जी ने तब कहा चौधरी साहब आप यहां से सबको हटा कर सिर्फ मैं और शिव शंकर की भोले कि मूक उपस्थिति में आपको वह सत्य बताना चाहता हूँ,,,,,,,
जिसे शुभा बिटिया ने अपने बेटे को कभी नही बताया तब तक सुयश मेहुल भी मंदिर परिसर के उस भाग में दाखिल हुए जहाँ पण्डित सुखिया औऱ मंगलम चौधरी बैठे हुये थे सुयश और मेहुल को देखते ही चौधरी साहब बोले बेटे सुयश तुम सुखिया मेहुल को लेकर कुछ देर के लिए बाहर जाओ,,,,,
पण्डित जी मुझे तुम्हारी माँ के विषय मे कोई विशेष रहस्य बताने वाले है सुयश को ज्यो ही चौधरी साहब का आदेश मिला वह बोला सुखिया काका चलो हम लोग बाहर चलते है जब बाबूजी का आदेश होगा तब आएंगे और सुखिया काका के साथ मेहुल सुयश मंदिर के सामने बाहर बागीचे में चले गए तीनो के चले जाने के बाद पण्डित तीरथ राज बोले जब शुभा बिटिया गांव में आई थी तब वह लगभग छ माह का बच्चा उसके पेट मे था गांव में द्वार द्वार आश्रय के लिए भटकती रही उंसे उसके बाप दादाओं के गांव में कुलटा कुलक्षिणी कह कर अपमानित किया गया,,,,,
किसी ने उसे पत्थर मारा तो किसी ने अभद्र अपशब्दों से उसका तिरस्कार किया वह घायल अवस्था मे दिन भर गांव वालों के तानों एव पत्थरो कि मार से कब वह रात्रि को इस मंदिर में आई मुझे पता नही जब मैं ब्रह्म मुहूर्त में नित्य कि भांति उठा तो देखा कोई दुखियारी कही से आकर मंदिर में अचेत पड़ी है तब मैंने बहुत कोशिश के बाद उसको चेटना में लौटाया और उपलब्ध संसाधनों से उसका इलाज किया,,,,,
लगभग एक महीने बाद वह कुछ भी बता सकने लायक हुई क्योकि उंसे अपने ही पैतृक गांव के द्वारा अपमान का सदमा आघात लगा था जिससे वह ईश्वर कि ही कृपा से बाहर आ सकी मैने तो सभी आशाएं त्याग दिया था इस दौरान गांव वाले प्रति दिन हमको हितायत दे जाते की पण्डित जी जिस कुलटा कुलक्षिणी को आपने शरण दे रखी है उंसे मंदिर से जितना शीघ्र हो हटा दीजिये नही तो गांव का कोई आदमी मंदिर में नही आएगा ना ही कोई चढ़ावा आएगा,,,,,
आपके जीवन और पोषण पर भी संकट खड़ा हो जाएगा लेकिन मैंने बिन कोई परवाह किये शुभा कि देख रेख ईश्वर का आदेश मानकर करता रहा ।शुभा ने बताया कि वह इसी गांव कि बेटी है!
यशोवर्धन और सुलोचना कि बेटी है उसके पिता यशोवर्धन माँ सुलोचना भाई संकल्प और संवर्धन अब इस दुनियां में नही रहे हिंदुस्तान पाकिस्तान बटवारे के उन्मादी हिंसा में मृत्यु कि भेंट चढ़ गए वह अभासगिन उनकी निशानी के रूप में कैसे बच गयी यह बात सिर्फ ईश्वर ही जानता है,,,,,
पण्डित मंगलम चौधरी से बताया कि जब वह मंदिर के पुजारी के रूप में गांव की सर्वसम्मति से नियुक्त किये गए थे उसके कुछ दिन बाद हमे मालूम हुआ कि कार्तिकेय झा और किशोरी झा के बेटे यशोवर्धन शेरपुर जो अब पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा है में बहुत बड़े व्यवसायी है विवाह के कुछ दिन बाद ही यशोवर्धन घर से भाग कर पता नही कैसे शेर पुर पहुंच गए वहां उन्होंने कैसे इतना बड़ा कारोबार खड़ा किया मैं नही जानता लगभग पंद्रह वर्ष बाद यशोवर्धन गांव आये तब उनकी माँ किशोरी और किशोरी झा जीवित थे यशोवर्धन अपने माता पिता को बहुत धन सुख सुविधा कि व्यवस्था की कार्तिकेय और किशोरी ने भी बेटे के घर से भागने की घटना भुला दिया पंद्रह वर्ष कि आयु में ही यशोवर्धन का विवाह हो चुका था और पत्नी सुलोचना गांव अपने श्वशुर कार्तिकेय और सास किशोरी की सेवा करती जबसे यशोवर्धन घर छोड़ कर भागे थे अब जब पंद्रह वर्षो बाद जब यशोवर्धन गांव आये तो पत्नी को साथ ले जाने की अनुमति पिता कार्तिकेय एव माँ किशोरी से मांगी माँ बाप को भरोसा हो चुका था कि यशोवर्धन अपनी पत्नी कि परवरिस देख रेख कर सकता है उन्होंने सुलोचना को यशोवर्धन के साथ भेज दिया
उज़के बाद कार्तिकेय और किशोरी गांव पर ही रहते बहुत बुजुर्ग नही थे अपनी खेती बारी करवाते एक आध घरेलू कारिंदे थे जो विश्वशनीय थे जो कार्तिकेय और किशोरी कि सेवा टहल में लगे रहते!
शेर पुर में सुलोचना ने दो पुत्रों एव बेटी शुभा को जन्म दिया शुभा दो भाइयों एव माँ बाप कि लाडली थी दो तीन वर्षों के अंतराल में यशोवर्धन कुछ दिन के लिए गांव आते और लौट जाते इस प्रकार कार्तिकेय का कुनबा गांव के सम्पन्न कुनबे में था समय बीतता जा रहा था,,,,,
लेकिन शायद ईश्वर को कार्तिकेय के परिवार कि खुशियां रास नही आई पड़ोस के गांव का नत्थू जो बचपन से शारित और शरारती था जब देश के नौजवान देश की स्वयं आजादी के लिए संघर्ष रत थे उस समय नत्थू का काम था थाने की मुखबिरी करना और लोंगो कि खशियो को डसना था उसे पता था कि कार्तिकेय झा का परिवार बहुत धनवान है उनका बेटा यशोवर्धन शेर पुर का बहुत बड़ा आदमी है वह किसी न किसी षड्यंत्र कि योजना बना रहा था और उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था।
उसने अपने साथियों के साथ कार्तिकेय झा के घर मे डांका डाला और पति पत्नी को ही मारने की कोशिश की भला हो किशोरी की गाय गौरी का जिसने जोर जोर से चिल्लाना शुरू किया और गांव वाले जग गए नत्थू भाग गया इस घटना के बाद कार्तिकेय और किशोरी बहुत दुखी रहने लगे उम्र भी चौथेपन में पहुच चुकी थी दोनों का निधन हो गया उस समय यशोवर्धन अपने पूरे परिवार के साथ आये और पूरे आस्था विधि विधान से पिता का श्राद्ध कर्म किया और अपनी खेती गांव वालों के हवाले कर माँ को लेकर चले गए,,,,,
गांव के घर पर ताला लगा दिया लगभग एक माह बाद पता लगा कि किशोरी जी भी इस दुनियां में नही रही उसके बाद सिर्फ एक बार यशोवर्धन परिवार के साथ गांव आये थे नत्थू का दबदबा बढ़ता गया उस के भय से कोई कुछ भी नही बोलता उसको पता था कि कार्तिकेय की जमीन को कचहरी से जब तक उनका बेटा वरासत दर्ज कराने आएगा तब बहुत समय है उसने अपने प्रभवा का इस्तेमाल करते हुए फर्जी कागजात बना कर कार्तिकेय झा की सैरी खेती अपने नाम करा लिया,,,,,,,
जब यशोवर्धन आये तब तक उसने अपना कब्जा भी कर लिया था यशोवर्धन शांतिप्रिय व्यवशायी थे उन्होंने कचहरी में अपने पिता कि जमीन के लिए वाद दाखिल कर दिया और वकील कृपा नारायण झा को सौंप कर शेरपुर लौट गए,,,,
कृपानारायण के प्रायास से यशोवर्धन सैरी संपति को सरकारी नियंत्रण में निर्णय ना होने तक करा दिया जिससे कि कोई भी उस पर अपने कब्जे का दावा ना करे यशोवर्धन अपने कारोबार में व्यस्त हो गए जबकि शेरपुर समेत पूरा क्षेत्र उन्माद का शिकार होता रहता था लेकिन यशोवर्धन को लगता कि उनके मुलाजिम हिन्दू मुसलमान सिख्ख सभी है सबके घरो में चूल्हा उनकी बदौलत चलता है,,,,,
उन्हें भला कौन हानि पहुंचाएगा फिर भी यशोवर्धन को दरभंगा के चौधरी मकरंद ने भी बहुत समझाया जो स्वंय भी चटगांव आदि के बड़े व्यवसायी थे लेकिन यशोवर्धन नही माने मकरंद चौधरी ने समय की चाल को भांपा और अपने कारोबार को समेटकर हिंदुस्तान लौट आये बात उन्नीस सौ पैंतालीस की है और हिंदुस्तान से अपना कारोबार समेट रहे,,,,
अंग्रेजो से औने पौने दाम हज़ारों एकड़ खेती बाग मिले आदि खरीद लिया उनका जितना कारोबार पूर्वी बंगाल में था उससे कुछ ही कम प्रतिशत हिंदुस्तान में लेकिन यशोवर्धन की तो जैसे मति मारी गयी थी।
और हुआ भी वही जिसकी आशंका थी यशोवर्धन का पूरा परिवार उन्मादी दंगे कि भेंट चढ़ गया इस घटना से छ सात महीने पहले शुभा कि मुलाकात मकरन्ध चौधरी के बेटे मंगलम से हुई थी वह किसी कार्य से अपने पिता के पुराने कर्मस्थली चटगांव और शेर पुर के लिए गयी थी मंगलम ने यशोवर्धन एव माँ सुलोचना कि अनुमति से चट गांव शुभा को लेकर गए थे,,,,
दोनों परिवारों के मध्य शुभा एव मंगलम के जन्म के साथ ही दोनों के विवाह कि सहमति थी विवाह हो भी चुका होता लेकिन मकरंद झा द्वारा अपने नए साम्राज्य कि हिंदुस्तान स्थापना में व्यस्तता और पूर्वी पाकिस्तान के खराब हालात के कारण यशोवर्धन कि उहापोह कि स्थिति यहॉ तक की सच्छाई हमे शुभा बिटिया ने बताई थी,,,,
जिस दिन सुयश नौकरी के लिए साक्षात्कार हेतु जा रहा था उस रात घर मे खाने के लिए कुछ भी नही था वह मुझसे ही दो मुठ्ठी चावल मांग कर ले गयी थी मेरे पास भी उतना ही था रात को कुछ सुयश को खिलाया कुछ सुबह जाने से पहले खुद भूखी रही सुयश के जाते समय शुखन भड़भूज से कुछ लाई चना मांग कर लायी थी जो सुयश ले कर गया,,,,
शुभा के साथ यह भी समस्या थी कि उसे पूरा गांव बिन ब्याही माँ के कारण कलाँकिन समझता सुयश के लौटने का पूरी रात इन्तज़ाए करती रही,,,,,,,
जारी है
kashish
09-Sep-2023 08:02 AM
Fantastic part
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Babita patel
16-Aug-2023 04:56 PM
Good
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Abhilasha Deshpande
16-Aug-2023 11:19 AM
Nice
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